"एक इम्तिहान दोस्ती का — जब प्यार और दोस्ती आमने-सामने हो जाएं"
राहुल और सुरेश बचपन से ही बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों ने एक ही स्कूल से पढ़ाई की, एक ही ट्यूशन में गए, और फिर कॉलेज में भी साथ-साथ दाखिला लिया। उनकी दोस्ती इतनी मजबूत थी कि एक-दूसरे के बिना उनका दिन अधूरा लगता था।
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"एक इम्तिहान दोस्ती का — जब प्यार और दोस्ती आमने-सामने हो जाएं" |
कॉलेज में कुछ महीने बीते ही थे कि एक दिन श्वेता नाम की लड़की ने उसी कॉलेज में एडमिशन लिया। श्वेता बेहद खूबसूरत थी, और उसकी सुंदरता पूरे कॉलेज में चर्चा का विषय बन गई। कई लड़के उसे पसंद करने लगे — उनमें राहुल और सुरेश भी शामिल थे।
जब राहुल और सुरेश ने पहली बार श्वेता को देखा, तो दोनों उसके सौंदर्य से प्रभावित हो गए। एक दिन राहुल ने सुरेश से मजाक में कहा,
“भाई, मेरी सेटिंग उस लड़की से करवा दो।”
सुरेश हँसते हुए बोला,
“तू बावला हो गया है क्या? मैं खुद उससे सेटिंग करूंगा।”
फिर दोनों ने तय किया कि वे दोनों श्वेता को प्रपोज करेंगे और जिसे श्वेता पसंद करेगी, वही उसका बॉयफ्रेंड बनेगा। उन्होंने यह भी वादा किया कि जो भी निर्णय श्वेता लेगी, वे दोनों उसकी इज्जत करेंगे और अपनी दोस्ती को नहीं तोड़ेंगे।
अगले दिन, कॉलेज में दोनों ने श्वेता को प्रपोज कर दिया। श्वेता थोड़ी चौंकी, लेकिन फिर मुस्कराकर बोली,
“तुम दोनों अचानक से आकर मुझे प्रपोज कर रहे हो, यह सही तरीका नहीं है। लेकिन मैं एक मौका देती हूं। मैं तुम दोनों के साथ 10-10 दिन रहूंगी, जिसके साथ मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा, मैं उसी को पसंद करूंगी।”
दोनों लड़के राज़ी हो गए। पहले श्वेता ने सुरेश के साथ 10 दिन बिताए। वे कैंटीन गए, मूवी देखी, साथ समय बिताया। सुरेश ने उसे हँसाया, खुश रखा, और श्वेता को अच्छा महसूस कराया।
10 दिन पूरे हुए, फिर राहुल की बारी आई। राहुल भी श्वेता को अच्छे से जानने और खुश रखने की कोशिश करता रहा। उन्होंने साथ घूमना-फिरना किया, बातें कीं, हंसे और मुस्कराए।
जब दोनों के 10-10 दिन पूरे हो गए, तीनों आमने-सामने बैठे। सुरेश ने पूछा,
“अब फैसला सुनाओ, श्वेता — तुम्हें हम दोनों में से कौन पसंद है?”
श्वेता ने गंभीरता से कहा,
“तुम दोनों बहुत अच्छे हो। मैंने जिन भी पलों को तुम्हारे साथ बिताया, वे मेरी जिंदगी के यादगार पल बन गए हैं। लेकिन... मैं किसी एक को तभी चुनूंगी जब तुम दोनों अपनी दोस्ती तोड़ने को तैयार हो।”
यह सुनकर राहुल चौंक गया। उसने तुरंत जवाब दिया,
“तुम हमारी बचपन की दोस्ती को तोड़ने की बात कर रही हो? मैं तुम्हें भुला सकता हूं, लेकिन अपने दोस्त को नहीं।”
लेकिन सुरेश ने कुछ और ही सोचा था। वह बोला,
“अगर तुम्हें इसी में खुशी मिलती है, तो मैं अपनी दोस्ती तोड़ने को तैयार हूं।”
राहुल को यह सुनकर दुख हुआ,
“सुरेश! क्या तुम सच में इस लड़की के लिए हमारी दोस्ती तोड़ने को तैयार हो गए?”
तभी श्वेता मुस्कराई और बोली,
“मैं बस तुम दोनों की परीक्षा ले रही थी। मैं जानना चाहती थी कि तुम दोनों में से किसके लिए दोस्ती का मतलब सच्चा है। इस इम्तिहान में राहुल पास हुआ — जिसने मेरे लिए अपनी दोस्ती को कुर्बान नहीं किया।”
यह सुनकर सुरेश चुप रह गया और राहुल की आंखों में खुशी और राहत झलक उठी।
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सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कई बार ऐसा मोड़ आता है जब प्यार और दोस्ती के बीच चुनाव करना पड़ता है। लेकिन सच्चा दोस्त वही होता है जो किसी भी हाल में दोस्ती की कीमत नहीं लगाता। दोस्ती कोई सौदा नहीं, वह तो विश्वास और सम्मान का रिश्ता है — और वही रिश्ता जीवन भर साथ देता है।
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